
__शीला शर्मा,,
सुबह जल्दी ही वह दी दिखाई
रोज की तरह,, हंसती हुई आई,
सिर पर छोटी सी पोटली,,
कमर पर बच्चा,,हाथ में मटकी उठाई।।
पीछे पल्लू खींचती बेटी को पकड़ा
इधर उधर देखा ,,भय ने जकड़ा,,
देर हो गई है,, जल्दी से आजा,,
भाई के पास से मत हटना जरा सा।।
पेड़ की छाया में साड़ी का झूला
बच्चे को सुलाया ,,हुआ काम पूरा,
मटकी के पास,, एक बोरी बिछाकर
दौड़ गई अंदर,, बेटी को बिठाकर।।,
मैं उसे देखते हुए सोच रही थी ,,
यह कब जागी होगी,
मैं घड़ी देख रही थी
मुंह अंधेरे से उठी हुई,
, दिन भर काम में जुटी हुई
संध्या को घर जाकर,
, फिर काम संभालेगी।।।
दिन भर ईंट गारा ढोती है,
ऊपर से नीचे,, जाने कितनी बार होती है
यह ग्रामीण नारी है,,
परिश्रम से कभी ना हारी है,,
दिखती सुकुमारी,,
श्रम में पुरुषों पर भारी है,,।।।
शीला शर्मा,,
पुणे,,,,,, महाराष्ट्र,,,,,