साहित्य
माँ की छाया

डॉ. राधा दुबे
मुझ पर लाड़ लड़ाती माँ,
आँचल का दूध पिलाती माँ।
अँगुली पकड़ चलना सिखाती माँ,
गिरकर उठना सिखाती माँ।
क, ख, ग से लेकर,
जीवन के सबक सिखाती माँ।
दिल पर पत्थर रख बेटी को विदाई देती माँ,
ससुराल में संबल बन जाती माँ।
हर कष्ट हर लेती माँ,
हर-हर गंगे जैसी माँ।
शुद्ध, निष्छल, उदार माँ,
दुर्गा सी सौम्य स्वरूपा माँ।
जाने कहाँ चली गई माँ,
अब कौन देश में रहती माँ।
तेरी याद बहुत आती माँ,
तेरी यादें दिल बहला जाती माँ।
आज मैं भी एक माँ हूँ माँ,
तुझसे सीखे सबक बेटी को सिखाती हूँ माँ।
डॉ. राधा दुबे, जबलपुर (म.प्र.)
स्वरचित, मौलिक व सर्वाधिकार सुरक्षित रचना