
__ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
ब्रह्मा ने यह सृष्टि बनायी।
माँ की कथा जगत समझायी।
हर घर में साथी बसे विधाता।
कहते हमसब उसको माता।।
माँ ममता की मूरत होती।
सत गंगा की सूरत होती।।
ममता जल उर से है बहता।
बालक इससे रक्षित रहता।।
पूजन माँ का जो नित करता।
जीवन खुशियों से है भरता।।
माता सदा ज्ञान की दाता।
जीवन जीना माँ से आता।।
कष्ट अनेकों माँ है सहती।
निज सुत हित काज सदा करती।।
सेवा माँ की निश्छल करिये।
जीवन अपना सुख से भरिये।।
माँ सम नहीं जगत में दूजा।
देवा भी करते नित पूजा।।
सारे देवा शीश झुकाते।
शुभता वर माँ से पाते।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
तिलसहरी, कानपुर नगर