
__प्रीति चौधरी” मनोरमा”
मुसाफिर हो तुम भी,मुसाफिर हैं हम भी
जीवन के सफर में ,बस चले जा रहे हैं ।
अगले मोड़ पर होगा गंतव्य हमारा,
मधुरिम स्वप्न मन में, पले जा रहे हैं ।
साँसों की तिजोरी से दे रहे हम किराया
नित्य छल रही है हमें यह मोह -माया।
भटकते हैं कस्तूरी की तलाश में सभी
और हम यूँ स्वयं को छले जा रहे हैं।
बीत गया वह सलोना सा बचपन सुहाना,
जवाँ धडकनों का साज भी हो गया पुराना,
बुढ़ापे की दहलीज तक पहुँच गयी उम्र
हिमखंड की भाँति सब गले जा रहे हैं।
रेत बनकर फिसल रहा है यहाँ समय,
दुख और संताप से भर जाता है हृदय,
कई प्रियजन दुनिया छोड़कर चले गए।
इस विवशता पर हाथ मले जा रहे हैं।
माँ का आशिर्वाद बन रहा है संबल।
सर्दियों में जैसे बना हुआ है ये कंबल,
जीवन की यात्रा हो रही है मंगलमय,
मुसीबत के वो लम्हे टले जा रहे हैं।
प्रीति चौधरी” मनोरमा”
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश