__शायर आनंद”कनक”

घुल गई हंसी शिर पर गुमान गुलफाम रखकर
कर गया बदनाम मुझको सर मेरे इल्जाम रखकर।।
मुहब्बत में सरे आम पुकारा बहाने तमाम रखकर
चाहते हैं बहुत उन्हें हमसे मगर इल्जाम रखकर।।
जिससे कि उम्र भर की वफ़ा हमने मुहब्बत में ही
जाने क्यूं नाराज था वो मुझसे ही इकराम रखकर।।
गुलशन था आबाद मेरा प्यार का एहसास भरकर
दिल से दिल मिलाते हैं लोग क्यों इल्जाम रखकर।।
खूबसूरत है दिल की धड़कन आवाज नमी से ही
बनाओ नया आयाम जिंदगी को नाम रखकर।।
अब किसी को भी न दे सर पर ताज महल जमी
महफ़िल से चल दिया हुक्कमरान पैग़ाम रखकर।।
खो गई दुनिया की भीड़ में तमाशा बीन बनकर
याद मैं उसकी जलता सदा सुबह शाम रखकर।।
उठ गया भरोसा दुनिया से इश्क के नाम पर अब
क्या करे मुहब्बत अब ये सर पर इल्जाम रखकर।।
महफ़िल में बुलाया उसने मुझे सदा यार समझकर
चाहत बहुत है मगर “कनक”जफा ईनाम रखकर।।
शायर आनंद”कनक”
बूंदी राजस्थान