मेरा हृदय उद्गार

गिरिराज पांडे
नहीं काटी कोई बिल्ली न कोई राह में टोका
निकलते वक्त घर से भी कोई मुझको नहीं रोका
मैं निकला देखकर सूरत यहां से मां की ही अपनी
मगर मुझसे यहां पहले था मेरा काल जो पहुंचा
वह बोला जोर से हंस कर मेरी गोदी में आ जाओ
समय पूरा हुआ तेरा मेरे सन्ग मे ठहर जाओ
मैं लेकर संग में अपने तुझे यमलोक जाऊंगा
तुम्हारे किए कर्मों का तुझे दर्शन कराऊंगा
नहीं जाना मुझे कुछ दिन किया मैं बहुत ही विनती
मगर वह एक ना माना कहा तू संग चल जल्दी
मैं भागा जोर से डरकर मिलन की बेला जो आई
नहीं मुझको पता कि आगे कितनी गहरी थी खायी
लगा धक्का गिरा में जोर से कुछ ना समझ आई
बचाना इसको हे प्रभु वर जो देखा सामने माई
राह के अनगिनत ये हादसे भी हाथ मलते हैं
लिपटकर मां के दामन से जो बच्चे साथ रहते हैं
उन्हें कुछ भी नहीं होता जो मा के साथ चलते हैं
निकलते वक्त घर से मां की सूरत देख लेते है
गिरिराज पांडे
वीर मऊ
रखहा बाजार
प्रतापगढ़