__उषाकिरण निर्मलकर
जिसका प्रेम पानें को, हर देवता तरसता है,
गोद में जिनके, बचपन बैठ मेरा हँसता है।
वात्सल्य में जिसके कान्हा, वाणी में राम बसता है,
मेरी माँ के चरणों में चारो धाम बसता है।
नौ माह धारी गर्भ में, और धार लिया जीवन को,
सुखद स्वप्न देखी पर मार दिया यौवन को।
नवजीवन देने को ही, खुदा उसको रचता है,
मेरी माँ के चरणों में चारो धाम बसता है।
चरण धूलि लेके जिसकी सिर माथे धार लूं,
चरण धोऊं अश्रुओं से सौ गंगा वार दूँ।
ईश्वर भी नाम जिनका, सुबह शाम जपता है,
मेरी माँ के चरणों में चारो धाम बसता है।
यही मेरा रामेश्वर, देखूं यहीं द्वारिका,
जगन्नाथ रहते यहीं, यहीं नाथ बद्रिका।
स्वर्ग यही है मेरा, यही मोक्षधाम रस्ता है,
मेरी माँ के चरणों में चारो धाम बसता है।
रचनाकार
उषाकिरण निर्मलकर
व्याख्याता अंग्रेजी
मगरलोड धमतरी(छ ग)