कवितासाहित्य

मैं संवरना चाहती हूँ!

मैं संवरना चाहती हूँ !

यूँ तो मुझे पायल पहना पसंद नहीं,

पर फिर भी किसी के नाम पहन झूमना चाहती हूँ !

बिंदी मुझे काली ही पसंद है, पर अब कुछ अलग से रंगो को माथे पर सजोना चाहती हूँ!

माँ की दी अंगुठी के बगल वाली ऊँगली खाली है, उन्हें किसी के बोझ तले ढकना चाहती हूँ ।

बालों को तो कहीं दफा फूलों से सजाये है, – पर अब उनके बीच रंग भरना चाहती हूँ!

देखो मेरी कलाई खाली है, इन्हें किसी ओर के खर्च से लादना चाहती है !

मन में कही ख्यालो के बुन चुकी हूँ, उन्हें अब तैयार होता देखन चाहती हूँ !

हाँ, मैं संवरना चाहती हूँ

-अनामिका तिवारी

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Shiveshwaar Pandey

शिवेश्वर दत्त पाण्डेय | संस्थापक: दि ग्राम टुडे प्रकाशन समूह | 33 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय | समसामयिक व साहित्यिक विषयों में विशेज्ञता | प्रदेश एवं देश की विभिन्न सामाजिक, साहित्यिक एवं मीडिया संस्थाओं की ओर से गणेश शंकर विद्यार्थी, पत्रकारिता मार्तण्ड, साहित्य सारंग सम्मान, एवं अन्य 200+ विभिन्न संगठनों द्वारा सम्मानित |

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