मैं संवरना चाहती हूँ !
यूँ तो मुझे पायल पहना पसंद नहीं,
पर फिर भी किसी के नाम पहन झूमना चाहती हूँ !
बिंदी मुझे काली ही पसंद है, पर अब कुछ अलग से रंगो को माथे पर सजोना चाहती हूँ!
माँ की दी अंगुठी के बगल वाली ऊँगली खाली है, उन्हें किसी के बोझ तले ढकना चाहती हूँ ।
बालों को तो कहीं दफा फूलों से सजाये है, – पर अब उनके बीच रंग भरना चाहती हूँ!
देखो मेरी कलाई खाली है, इन्हें किसी ओर के खर्च से लादना चाहती है !
मन में कही ख्यालो के बुन चुकी हूँ, उन्हें अब तैयार होता देखन चाहती हूँ !
हाँ, मैं संवरना चाहती हूँ
-अनामिका तिवारी
