__वीणा गुप्त

सुबह पाँच बजे अलार्म बज गया। उनींदी शशि ने जल्दी से उसे बंद किया। अलार्म एकाध बार और बज जाए ,तो उसके पति महेश उसे टोक देते हैं ,” भई,अगर उठना नहीं है तो लगाती ही क्यों हो? दूसरों की भी नींद खराब करती हो। ” उठना तो उसे है ही, उठना ही पड़ेगा। न उठे , तो कैसे चलेगा। मन ही मन बड़बडा़ती हुई शशि ने कमरे से बाहर निकल किचन का रूख किया। रात के खाने के बर्तन सिंक में भरे पड़े हैं। बर्तन वाली बाई तो पौने दस, दस तक आती है। उसे ब्रेक फास्ट तैयार करना है। लंच के लिए तीन डिब्बे पैक करने हैंं। शशि ने जरूरी के बर्तन तवा, कडा़ही, कुकर, भगौना आदि धो मांज कर तैयार किए। । आलू उबलने रखे और दूसरी गैस पर चाय का पानी चढ़ाया। । महेश को सुबह -सुबह ही चाय पीने की आदत है। फिर उसने फ्रिज में झाँका । क्या बनाए वह, जो सबका काम चल जाए। वैसे शशि इस रोज-रोज के काम से बुरी तरह ऊब चुकी है। पूरी ज़िंन्दगी वह घड़ी की सुइयों से भी तेज भागी है। नौकरी के साथ- साथ बिना किसी की मदद के उसने अपने तीन बच्चों वाले परिवार को अपने बल- बूते पर ही पाला है। हां, बाहर का काम सदा महेश ने ही संभाला है। सुबह चार बजे से लेकर रात के ग्यारह बजे तक खटी है वह अपनी गृहस्थी में। लेकिन आज वह पूरी तरह संतुष्ट है।बच्चे-बहू सभी अच्छी नौकरियों में हैं, किसी
किस्म की कोई कमी नही। उसका अपना मकान है। दोनों बेटे भी पास ही अपने अपने मकान में रहते हैं। बेटी और दामाद सिंगापुर में सैटल हैं। हां ,वह रिटायरमेंट के बाद आराम करना चाहती थी। मजे से उठना ,घूमना चाहती थी, जो नहीं हो पाया। अब बेटे की गिरस्ती में खट रही है।अक्सर अपने पर ही झल्लाती है । महेश को कुछ बताओ तो कहते हैं, “तू खुद ही मरी जाती है अपने मोह में। अब भुगत। नहीं होता तो छोड़ सब। मुझे मत बता। “
छूटता ही तो नहीं है कुछ भी। बच्चों को नौ बजे अपने काम पर जाना है। साढ़े आठ बजे पोते को स्कूल भेजना है। पौने आठ बज चुके हैं। बेटे- बहू ने अभी तक दर्शन नहीं दिए। वह सब तैयार करके बालकनी में जा बैठी। पार्क में घूमते लोगों को देखने लगी। ” गुड मार्निंग दादी। ” पाँच बरस का पोता आँखें मलता उसके पास आकर खड़ा हो गया। । शशि ने उसे प्यार किया ।उसके पीछे -पीछे दिव्य भी आ गया। “माँ ,मेरी चाय कहाँ है? ” उसने पूछा। शशि चाय बनाने चली। ” ईशा के लिए भी बना लूँ चाय? वह भी उठ गई होगी।” चाय पीते -पीते पीते दिव्य बोला ,”अरे माँ !सारा दिन बैठी रहती हो। नीचे जाकर पार्क के दो चार चक्कर ही लगा आया करो। वरना टाँगे जुड़ जाएंगी।”
शशि उसे कुछ कहते कहते रुक गई। बहू पोते को स्कूल के लिए तैयार कर रही है। “आज फिर लेट हो गया, लगता है आज फिर स्कूल बस मिस करेगा। ईशा बेटू से कहती है । न जाने क्यों शशि को लगता है कि वह उसे ही सुना रही है। उसने जल्दी से बच्चे के लिए बॉर्नविटा बनाया। उसे बिस्किट दिया ।” “आज फिर आलू का परांठा बना दिया मैडम कहती हैं रोज अलग अलग टिफिन लाया करो।पर यहांँ तो रोज ही—–। ” बहू की बड़बड़ाहट साफ- साफ उस तक आ रही है।
असल में वह उसे ही सुना रही है। शशि ने थोड़े से अंगूर और एप्पल पोते के बैग में रखे ” सब फिनिश कर ले ना।” उसने पोते को प्यार से कहा। “ओ के दादी ,बेटू बोला ।”आई लव यू ” स्कूल जाते बेटू ने उसे फ्लाईंग किस दिया। आज बेटू को बस मिल गई । उसने बालकनी में खड़ी दादी को टाटा किया। शशि खुश हो गई ।
इन्हीं छोटी- छोटी खुशियों ने उसे मोह बंधन में कस कर बाँध रखा है।
“माँ, आज मैं लंच नहीं ले जा रही । आज एक कॉलीग की फेयर वैल है”। बहू की कैब आ गई है । वह दौड़ती- -भागती उसे पकड़ती है। यह बात पहले बता देती तो——-। उसकी सोच में व्यवधान पड़ा।”माँ, गाडी़ की चाभी ढूँढ दो प्लीज। ” दिव्य बोला। वह चाभी ढूँढ रही थी कि कमरे से महेश की आवाज आई ,”चाभी यहाँ है। मेरी पैंट में।” “पापा को हजार बार कहा कि चीज जहाँ से लो, वहीं रखो, पर नहीं।”बेटा बुदबुदाता है। “बेकार में दस मिनट खराब कर दिए। अब भगाओ गाड़ी ” सैंडविच खाता -खाता दिव्य लिफ्ट की ओर लपका।
बेटू ढाई बजे तक आ जाता है। उसे खिलाने और सुलाने में ही शशि को चार बज जाते हैं। बाद में शाम का काम शुरू हो जाता है। दिन देखते ही देखते फुर्र हो जाता है ।
पर शशि निभा रही है। मन से निभा रही है। पर उसका निभाना किसी को नज़र नहीं आता। शाम को सब निबटा कर बैठी थी कि दिव्य और ईशा आ गए। आज फ्राइडे है। कल सबकी छुट्टी है। पर शशि की नहीं। कल क्या स्पेशल बनाऊंँ, वह यही सोच रही थी। उन दोनों को देख कर उनसे ही पूछ लिया। “माँ !कल ईशा के मम्मी- पापा आ रहे हैं। उन्हें सुबह रिसीव करने जाना है। बाहर ही कुछ खा -पी लेंगें।आप अपना और पापा का देख लेना।” “ठीक है ” वह बोली। उसने महेश को यह बात बताई और फिर अपना सामान पैक करने लगी। “पैकिंग क्यों कर रही हो, अरे भई कुछ दिनों की बात है। साथ रह लेंगे।” “कुछ दिनों की बात हो या महीनों की ,अब हमारा यहाँ से जाना ही सही रहेगा।” उसने प्रैक्टिकल बात की। ‘हम कल सुबह ही अपने घर चले जाएंगे।”
सुबह उन्हें जाने को तैयार देख बेटा बोला” यह ठीक किया आपने। घर भी कब से खाली पड़ा है।”
ईशा तो रात को ही कह रही थी,कि उसके मम्मी पापा अब चार -पाँच महीने यहीं रहेंगे। उनका भी थोड़ा चेंज हो जाएगा। मैंने सोचा आपको बता दूँ।” शशि कुछ नहीं बोली। उनके जाने से पहले ही महेश और शशि अपने घर के लिए रवाना हो गए। अपने घर में उन्हें पूरा स्पेस मिलता है और शशि का काम बहुत कम हो जाता है। महेश तो पहले ही बेटे के पास जाना नहीं चाहते थे, ये तो शशि ही उन्हें पोते की वजह से यहाँ ले आई थी।बच्चे को क्रैच में डालना उसे पसंद नहीं था। बहू ने तो कहा भी था,” माँ ! मेरी सभी कॉलीग्स के बच्चे क्रैच में जाते हैं। कोई प्राब्लम नहीं होगी।और अब तो बेटू पाँच साल का हो गया है। ” पर उसका मन नहीं माना और वह बिन बुलाए मेहमान सी यहाँ चली आई ,और अब खुद ही जा रही है ।
सप्ताह भर बाद बेटे का फोन आ गया कि बेटू नाना- नानी के साथ खूब खुश है। ईशा को भी अब घर के काम की कोई टेंशन नहीं है। उसकी माँ बहुत अच्छा खाना बनाती है। ” पहले ही कौन सी टेंशन थी। आठ- आठ बजे तक तो पड़ी सोती थीं महारानी। ” उसने सोचा। “अच्छी बात है। खाए माँ के हाथ के पकवान।” पर उसका मन कहीं आहत था कि इतना करने पर भी यह सुनने को मिला। ऊपर से रही सही कसर महेश की जली कटी बातों ने पूरी कर दी। उसका उखड़ा मूड देखकर महेश सब भांप गए। “क्या कह रहा था दिव्य? “कुछ नहीं बस। यूँ ही। ” वह बोली। महेश सब समझते थे। बोलले ,”मैं तो पहले ही कह रहा था, कुछ नहीं होता चौबीस घंटे घर के धंधों में पिलने से। अरे भई। रोटी -पानी तो मेड भी बना देगी। काम उसका करो जो तुम्हारी कद्र करे। पर तुम तो बेमतलब ही —–।” महेश हमेशा ऐसे ही दो टूक बोलते हैं। कभी उससे ढंग से बात नहीं करते। अब वह अपने मन की बात किससे कहे? अपमान के कारण शशि की आँखों में आँसू आ गए। वह उठकर वॉशरूम में घुस गई। उसका मन जोर -जोर से रोने को हो रहा था।
इस बात को अभी पंद्रह दिन ही बीते थे कि रविवार को सुबह- सुबह ही दिव्य ,बेटू के साथ आ गया। “सब ठीक तो है बेटे?” वह उसके इस प्रकार आने पर थोड़ा हैरान-परेशान थी।”सब ठीक है,बस बेटूआपके परांठे मिस कर रहा था” दिव्य लाइट मूड में था। उसकी चिंता दूर हो गई। “नानी माँ क्या- क्या खिलाती हैं बेटू को” उसने बेटू को प्यार करते हुए पूछा। “मैगी” बेटू खुशी से आँखें चमकाते हुए बोला। उसे मैगी बहुत पसंद थी ,पर शशि को एक दम नापसंद। “तब तो मजे आ गए बेटू के” वह बोली। पर बेटू तब तक बालकनी में लगे फूल पर मंडराती तितली पकड़ने की कोशिश में लगा था।
“और बताओ, अब तो ईशा को कोई टेंशन नहीं है? उसने पूछा। “अरे माँ! अब तो टेंशन ही टेंशन है।” दिव्य अपने उसी बिंदास लहजे़ में बोला “क्यों अब ऐसा क्या हो गया?”उसने पूछा। ” “माँ, ईशा कि मम्मी उसे रोज छह बजे ही कॉल कर- करके जगा देतीं हैं। किचन का सारा काम अब ईशा ही करती है। उसकी मम्मी को सुबह जल्दी उठने की आदत नहीं है। उन्हें सिर दर्द हो जाता है। ” “ठीक है, माँ का ख़्याल तो रखना ही चाहिए। वैसे भी ईशा के आफिस जाने के बाद तो उन्हें ही करना है सब काम। ” वह सहजता से बोली। दिव्य हँस पड़ा ,”उन्हें क्या काम करना है माँ? साढ़े नौ बजे मेड आ जाती है और शाम को सात बजे ईशा के आने के बाद ही जाती है ,वही सब करती है।बेटू के लिए एक ट्यूटर रखी है । वही उसे होम वर्क भी करवा देती हैं। सब मजे ही मजे हैं ।” “कितने पैसे लेती हैं मेड और ट्यूटर? “शशि ने यूँ ही पूछा। कमरे में आते महेश उसकी यह बात सुनी और बोले, “तुम्हें क्या करना है यह जानकर? अरे भई ?अच्छा कमा रहें हैं तो लुटाएंगे ही। ” दिव्य पिता की बात पर भड़क गया। “पापा इसमें लुटाने वाली क्या बात है ,अपना आराम भी तो देखा जाता है। आपकी तरह ज़िंदगी भर कतर -ब्योंत के नहीं चल सकते हम।” महेश चुप रह गए,पर शशि को यह बात चुभ गई। “दिव्य, यह क्या तरीका है अपने पिताजी से बात करने का ? और हाँ जिस कतर ब्योंत की बात कर रहा है आज उसी की बदौलत तुम इस मकाम पर पर पहुँचे हो।” “माँ ! मैं इस बारे में कोई बहस नहीं चाहता। ईशा ओर उस की मम्मी ने इस बारे मे पहले से ही मेरा दिमाग ख़राब किया हुआ है। “अब क्या प्राॅब्लम है? अब तो सब काम शांति से चल रहा है न? ” अरे माँ, शांति की तो बात मत कर करो। आजकल माँ बेटी में रोज ही महाभारत —- ।” शशि की हैरानी का ठिकाना नहीं। सास बहू की महाभारत तो सब जानते हैं पर यहाँ तो माँ बेटी— ।” “पता है कल शाम मम्मी ने काम वाली बाई को काम से हटा दिया। उन्हें उस का बनाया खाना, उसका कोई काम पसंद नहीं आता। ऊपर से सत्रह हजार रूपए महीने का फालतू खर्च। बस इसी बात पर माँ -बेटी में ठन गई। ईशा ने साफ कह दिया , वह घर का कोई काम नहीं करेगी। जिसने करना है. जैसे करना है, करे ना करे उसकी बला से। “बिल्कुल ठीक बात है तेरी सास की। ईशा को करना चाहिए काम। तेरी माँ ने भी तो उम्र भर—।” महेश बोले। शशि ने आँखें तरेरीं और महेश को देखा। वह बात आधी छोड़कर ” आजा बेटू,दादू के साथ मस्ती करेंगे। ” कहते हुए उसके साथ बात करने लगे।
“आज कुछ खाया पिया या यूँ ही —” “कैसा खाना – पीना माँ। आज तो ज़ंग के पूरे- पूरे आसार हैं। इसलिए तो मैं बेटू को लेकर यहाँ खिसक आया।” ऐसा क्या हो गया सुबह- सुबह? ” शशि ने पूछा। ” आज तो गज़ब हो गया माँ। आज छह बजे मम्मी जी ने फिर ईशा को कॉल कर दिया। ईशा भड़क उठी। माँ के कमरे में जाकर बोली, “क्या मुसीबत है माँ। संडे को भी सोने नहीं देतीं। आप से अच्छी तो माँ हैं ।कभी नहीं जगातीं। चुप चाप काम करती रहतीं हैं। आपने तो मेरी नाक में दम ——।” और क्या था। ज्वालामुखी फट गया। मैं तो भइया, इसके लपेटे में आने से बचने के लिए सीधा यहाँ आपकी शरण में आ गया। ” दिव्य के बोलने के अंदाज़ से शशि को हँसी आ गई। ” “भई!अब जल्दी से कुछ खिलाओ , अपने बहादुर बेटे को।” महेश बोले। “हाँ दादी ,जल्दी से लाना। मुझे भी बहुत भूख लगी है। “अभी लाती हूँ।” वह बोली। “वाह कितना यम्मी है आलू परांठा ,दादी ।आप फिर से हमारे पास आ जाओ न?” बेटू बोला। ” हाँ माँ ,अब तो आपको ही मोर्चा संभालना होगा। मुझे तो संधि वार्ता के कोई आसार नहीं लग रहे ।”
दही -परांठा खाता दिव्य बोला। अरे वाह माँ, सूजी हलवा भी है। थोड़ा सा ईशा के लिए भी पैक कर देना। शशि हल्के से मुस्करा दी। पासा पलट गया था ।शशि की ममता पिघलने लगी। महेश ने उसे मना करती नज़रों से देखा। लेकिन शशि का अपने पर कोई बस नहीं था। मोह बंध उसे बार -बार उलझा रहे थे।
वीणा गुप्त
नारायणा विहार
नई दिल्ली -28