
©राजीव कुमार झा
सबको सोचने का
बोलने का
अवसर मिला है!
जीवन फूल की
तरह
खिला है!
आदमी हर जगह
जिम्मेदारियों से
घिरा है!
संघर्ष ही संघर्ष
जीवन में
छिड़ा है!
अंधेरे में सबके पास
जलता दिया है!
सबने जीवन उधार
यहां धरती से
लिया है!
दुख की चादर को
खुशियों के
धागों से बुना है!
भगवान का नाम
जीवन के अंत में
जिसने सुना है!
यमराज के
दरबार में
अपनी आंखें
उसी ने ठीक से
मुंदा है!
हमारा नाम
संघर्ष के पथ पर
खुदा है!
मेरे साथ हर
आदमी
जीवन की जोत में
जुता है!