राजा राम मोहन राय

साधना मिश्रा
सन सत्रह सौ बहत्तर, बाइस मई का दिन था आया ,
बंगाल प्रांत , ब्राह्मण परिवार में माँ तारिणी ने पुत्र था जाया।
अति हर्षाये,पिता रमाकांत राय ने राजा राममोहन राय नाम धराया।
जो आगे ,ब्रह्मसमाज संस्थापक बन आधुनिक भारत का जनक कहाया।
वही,विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता बन नव समाज नायक निखरे ।
अपनी तीव्र मेधा बल पर,राममोहन पुरोधा बन देश में उभरे
अपनी धुन के थे पक्के, स्वतंत्रता के सच्चे मतवाले थे ,
वैदिक संस्कृति के संवाहक संस्कार जगाने निकले थे ।
कुप्रथा में जलती भाभी देख, समाजिक बुराइयां हटाने प्रति संकल्पित थे।
भारतीय परंपरा का पुनर्जागरण ,नव भारत
का सपना पाले थे ,
बाल विवाह ,सती प्रथा के कट्टर विरोधी निकले जन-जन को स्वर देने ।
ईस्ट इंडिया की नौकरी, कर ,कुनीति से ,आत्मग्लानि लगी होने ।।
छोड़-छाड़ अंग्रेज नौकरी, माँ भारती की शान प्रमुख मानी ।
देश,और समाज हित ही जीवन समर्पित करने की ठानी।।
सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन की मजबूती से नींव रखायी।
रोके,घर घर जा बाल विवाह, सती प्रथा भी जा,जा रुकवायी ।।
देखो आज उन्ही की मेहनत कितने चटक रंग है लाई ।
बंद हो गए बाल विवाह, सतीप्रथा भी खत्म हुई।।
सशक्तिकरण ,स्वाधीनता की अलख जगाने वाले की ,आख़िर अंतिम बेला आई,
एक विदेशी समाचार से भारत की जनता अकुलाई ।
आया अठारह सौ तेंतीस, का काला दिन सत्ताइस सितंबर ,
इंग्लैंड की धरती पर नवभारत निर्माता छोड़ गया नश्वर संसार ।।
हे युग निर्माता नीति प्रणेता हिंद धरा का
नमन स्वीकारो ,
इस धरती पर अपने ऐसे स्वरूप में एक बार फिर से अवतारो।।
इस धर्मनिरपेक्ष देश मे देखो खतरे में हिन्दुत्व पड़ा है,
आकर अपने उदबोधन से सशक्त मशाल जला जाओ,
देश के बिखरे ,सत्ता लोलुप बंधुओं को इंसानियत सिखला जाओ।
एक नया सुढृन,संकल्पित भारत फिर से आकर दे जाओ ।।
!! साधना मिश्रा “लखनवी” !!
राजा राम मोहन राय
सन सत्रह सौ बहत्तर, बाइस मई का दिन था आया ,
बंगाल प्रांत , ब्राह्मण परिवार में माँ तारिणी ने पुत्र था जाया।
अति हर्षाये,पिता रमाकांत राय ने राजा राममोहन राय नाम धराया।
जो आगे ,ब्रह्मसमाज संस्थापक बन आधुनिक भारत का जनक कहाया।
वही,विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता बन नव समाज नायक निखरे ।
अपनी तीव्र मेधा बल पर,राममोहन पुरोधा बन देश में उभरे
अपनी धुन के थे पक्के, स्वतंत्रता के सच्चे मतवाले थे ,
वैदिक संस्कृति के संवाहक संस्कार जगाने निकले थे ।
कुप्रथा में जलती भाभी देख, समाजिक बुराइयां हटाने प्रति संकल्पित थे।
भारतीय परंपरा का पुनर्जागरण ,नव भारत
का सपना पाले थे ,
बाल विवाह ,सती प्रथा के कट्टर विरोधी निकले जन-जन को स्वर देने ।
ईस्ट इंडिया की नौकरी, कर ,कुनीति से ,आत्मग्लानि लगी होने ।।
छोड़-छाड़ अंग्रेज नौकरी, माँ भारती की शान प्रमुख मानी ।
देश,और समाज हित ही जीवन समर्पित करने की ठानी।।
सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन की मजबूती से नींव रखायी।
रोके,घर घर जा बाल विवाह, सती प्रथा भी जा,जा रुकवायी ।।
देखो आज उन्ही की मेहनत कितने चटक रंग है लाई ।
बंद हो गए बाल विवाह, सतीप्रथा भी खत्म हुई।।
सशक्तिकरण ,स्वाधीनता की अलख जगाने वाले की ,आख़िर अंतिम बेला आई,
एक विदेशी समाचार से भारत की जनता अकुलाई ।
आया अठारह सौ तेंतीस, का काला दिन सत्ताइस सितंबर ,
इंग्लैंड की धरती पर नवभारत निर्माता छोड़ गया नश्वर संसार ।।
हे युग निर्माता नीति प्रणेता हिंद धरा का
नमन स्वीकारो ,
इस धरती पर अपने ऐसे स्वरूप में एक बार फिर से अवतारो।।
इस धर्मनिरपेक्ष देश मे देखो खतरे में हिन्दुत्व पड़ा है,
आकर अपने उदबोधन से सशक्त मशाल जला जाओ,
देश के बिखरे ,सत्ता लोलुप बंधुओं को इंसानियत सिखला जाओ।
एक नया सुढृन,संकल्पित भारत फिर से आकर दे जाओ ।।
!! साधना मिश्रा “लखनवी” !!