
__मानसी मित्तल
सूर्यवंश में जन्म लिया है,
मर्यादा पुरुषोत्तम राम।
दशरथ सुत हैं कहलाये,
अयोध्या इनका धाम।
कौशल्या की आँख के तारे,
कैकयी, सुमित्रा के राजदुलारे।
राम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न
हर जन के ये अति हैं प्यारे।
भरत को राजगद्दी दिलाने की खातिर,
कैकयी ने श्री राम को दिया था बनवास।
अपने पिता दशरथ के वचनों का,
श्री राम ने रखी पिता की लाज।
अपनी भार्या, व अनुज लक्ष्मण संग,
चल दिये चौदह वर्ष को श्री राम।
जिनकी राह निहार रही थीं,
माता शबरी इनका नाम।
झूठे बेर शबरी के खाकर,
श्री राम ने रखा इनका मान।
दर्शन पाकर तृप्त हुई अखियाँ,
पहुच गयी आलौकिक धाम।
माँ सीता की हठ की खातिर,
ढूंढने निकले स्वर्ण हिरन को।
माया जाल बिछा रावण ने,
हरण किया माँ सीता का उसने।
ढूंढने निकले…श्री राम लखन ,,,सिया को।
मिला साथ वानर का उनको।
पहुँच गए लंका में हनुमत,
पता दिया सीता का उनको।
लिखा पत्थर पर श्री राम नाम,
पहुच गए लंका के धाम।
युद्ध भयंकर खूब चला था,
एक से बढ़कर एक खड़ा था।
अंतिम दिन रावण खुद आया,
अपनी माया से सबको भरमाया।
बाड़ों की बौछार हुई थी,
श्री राम के द्वारा रावण की मौत हुई थी।
राम चरित मानस से
हमको मिलता है ये सार।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जैसे,
सरल, स्वभाव से ले काम।
मानसी मित्तल
शिकारपुर
जिला बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश