
बिमल काका गोलछा “हँसमुख”
थके थके से ये कदम,
गिरे होगे कितनी बार।
अनगिनत ठोकरे लगी,
अनदेखी की कई बार।।
संभल जाता हूं हरबार,
ये मुझे थका नहीं पाई।
उम्र के इस पड़ाव पर,
मुख पे शिकन ना आई।।
आज भी जज्बा रखे हूं,
जितने की जिद्द रखे हूं।
परिस्थिति हरा ना सके,
मन में विश्वास रखे हूं।।
दुविधा को देखकर ही,
“हँसमुख” खोजे निदान।
समस्याएं सुलझती है,
स्वयं बनती है वरदान।।
बिमल काका गोलछा “हँसमुख”
श्रीडूंगरगढ़ (बीकानेर) राजस्थान