वर्तमान विसंगतियों पर सघन कटाक्ष

वर्तमान विसंगतियों पर सघन कटाक्ष
साहित्य लेखन में गद्य की सर्वाधिक कठिन विधा है-व्यंग्य। बढ़ती भौतिकवादी प्रवृत्तियों, अभद्र मनोरंजन की लालसाओं और अतृप्त कामनाओं के स्वनिर्मित तनाव में जीता मनुष्य व्यंग्य के नाम पर अश्लील चुटकुलों, और आपत्तिजनक टिप्पणियों में हास्य ढूंढता है। और यही कारण है कि स्वस्थ एवं सात्विक व्यंग्य को समझने के स्थान पर उसे अस्वीकार कर रद्दी करार देता है।
‘मूर्खता के महर्षि’ एक ऐसा ही व्यंग्य संग्रह है जो आज की परिस्थितियों पर सार्थक, सटीक और सुन्दर व्यंग्य करता है। वरिष्ठ- साहित्यकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी का यह पहला व्यंग्य संग्रह है। सभी व्यंग्य विषयों की गहरी समझ और हास्य प्रतीकों के आविष्कार से निर्मित हैं। रामकिशोर जी ने इस व्यंग्य संग्रह को लाकर एक बार पुन: यह सिद्ध किया है कि मर्यादित भाषा और सुगठित शब्द -शिल्प ही व्यंग्य की कसौटी है।
संग्रह में पूरे 32 व्यंग्य हैं जिन्हें पढ़ते हुए अनायास ही पूरे 32 दाँतों की सफेदी जबड़े की मजबूती को दर्शाने लगी। जीवन के छ: दशक देख चुके रामकिशोर जी का व्यंग्य परिपक्व एवं गंभीर है। वे निजी जीवन सहित राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, तात्कालिक और आकस्मिक सभी मुद्दों, पर व्यंग्य करते है संग्रह के व्यंग्य ‘फिक्रनामा’ से ‘मोक्ष के गंगाजल’ तक की यात्रा करते हैं, जिस प्रकार यात्रा के दौरान पठार, चढाई, शीर्ष और उतराई आते हैं संग्रह की कुछ रचनाएं मुस्कुराती हैं, कुछ खिलखिलाती हैं, कुछ ठहाका मारती हैं तो कुछ केवल गुदगुदी के दरिया किनारे तक ही ला पाती हैं।
पहली व्यंग्य रचना ‘मोक्ष का गंगाजल’ पाठक को सोचने पर मजबूर करती है कि हम वर्तमान, वैज्ञानिक युग में जीते हुए भी किस तरह से धार्मिक अंधविश्वासों में जकड़े हुए। संग्रह का सबसे छोटा किंतु सार्थक व्यंग्य है ‘तुकान्त का अन्त’ जो कुछ नकारात्मक प्रभाव वाले शब्दों का अन्त करने का पक्षधर है।पिछले कुछ वर्षों में स्टिंग ऑपरेशन जैसे अभियानों का बोलबाला रहा है। इनमें कितनी वास्तविकता है यह तो ईश्वर जाने किन्तु इसके बहाने कई नामी हस्तियाँ जो कि लाइमलाइट से लगभग गायब सी हो रहीं थी एक बार फिर तारों सी जगमगाने लगीं।
कई प्रणालियों की पोल खोलता यह व्यंग्य संग्रह अख़बार जगत के ज़िक्र के साथ एक रचना इसी को समर्पित करता हुआ ‘अखबारों की बिरादरी’ की पूरी पड़ताल करता है। वर्तमान में इन अखबारों को पेड न्यूज ‘लोकतंत्र का नंदनवन’ शीर्षक से रचित व्यंग्य में रामकिशोर जी ने लोकतंत्र की जंगलराज से तुलना कर कई भाव प्रकट कर दिए। राजनीति और राजनैतिक पार्टियों एवं चुनावी घोषणाओं पर केन्द्रित इस विस्तृत व्यंग्य ने अनेकानेक बारीकियों पर गहरी नज़र से कटाक्ष किए हैं। इसी प्रकार ‘घोटाले की होली’ व्यंग्य कार्यालय की राजनीति से अवगत करवाता है तो ‘बेईमानी का मौसम’ व्यंग्य का सागर सा जान पड़ता है। ‘कहानी का प्रोजेक्ट’ व्यंग्य में कहानी का प्लाट खोजने के बहाने कई गहन विचार सामने आए आज का एक बड़ा सत्य भी जानने को मिला
“आम आदमी को तो सिर्फ वोट डालने लिए केवल आश्वासन की घुट्टी पर सपनों के इंद्रधनुष दिखाकर पाला जाता…।”
‘मृत का मृत्युंजप’ व्यंग्य में रामकिशोर जी बताते हैं कि सोशल मीडिया एक आभासी संसार है किन्तु हर व्यक्ति इससे किसी न किसी रूप में जुड़ा हुआ है। दूसरों के लाइक्स, कमेंट और शेयर के लिए अकाउंट धारी अमर्यादित और आपत्तिजनक आलेख पोस्ट करने से भी परहेज़ नहीं करते। जनहित जैसे अछूते विषय को अपने व्यंग्य ‘जनहित की ठकठक’ में रामकिशोर जी राजनीति की बिसात का एक पासा बताते हैं। लोकतंत्र के कई तथ्यों और विसंगतियों पर बहुत सारे व्यंग्य इस संग्रह में हैं। इसी प्रकार तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग की पोल खोलता व्यंग्य है ‘पानीदार बुद्धिजीवी’ जो इस तथ्य को सामने रखता है कि आज भ्रष्ट बुद्धि को सम्मान और पुरस्कार मिलते हैं किन्तु उत्तम और श्रेष्ठ बुद्धि को अपमान, घृणा और तिरस्कार मिलता है। इस युग में इन्टरनेट के प्रचलन, आई. टी. सेल के उदय और राजनीतिक पार्टियों के षड्यंत्र से बने मकड़ जाल में फँसा है आम आदमी। निर्दोष होते हुए भी अनगिनत अपराधों में भागीदार करार दिया जाता है।
रामकिशोर जी ने इस व्यंव्य संग्रह में दैनिक दिनचर्या, कार्यालयी वातावरण, सामाजिक तथ्यों और कुछ वर्तमान घटनाओं का समावेश करते हुए इतने उत्कृष्ट व्यंग्य रचे हैं कि आश्चर्य होता है ऐसे विषयों पर हास्य भी रचा जा सकता है क्या ? संग्रह के शीर्षक व्यंग्य मूर्खता के महर्षि’ ऐसे ही एक अनोखे विषय की बानगी है। लेखक कार्यालयी उत्तरदायित्वों को गंभीरता और तत्परता से पूरा करने की मनाही करते हैं। रामकिशोर जी के अनुसार मूर्खता युग सापेक्ष है। समय के साथ इसमें परिवर्तन भी आया है। मूर्ख होना अलग बात है और मूर्ख होने का अभिनय करना अलग बात है। पर आज वही सफल है जो मूर्खता का अभिनय पूरी लगन से करता है। लेखक की मेहनत और व्यंग्य की बारीकियां प्रत्येक व्यंग्य में स्पष्ट दिखलाई पड़ती है। अंतिम व्यंग्य ‘फिक्रनामा’ तक पहुँचते पहुँचते पाठक हर फिक्र से बरी हो जाता है। यह व्यंग्य संग्रह जीवन से जुड़े अनूठे और अनगिनत पक्षों पर व्यंग्य कर हमें जीवन जीने के कुछ अनोखे नुस्खे दे जाता है। ये नुस्खे विसंगतियों को सहने, असफलताओं की चिंता न करने, सामाजिक अव्यवस्थाओं को स्वीकारने और लोकतंत्र की कमियों पर विषाद न करने की सलाह देता है और वास्तविकता भी यही है कि इन पर असंतोष और अवसाद व्यक्त करने के स्थान पर इन पर व्यंग्य करें, इससे तनाव भी न होगा और मुस्कुराहटें भी बढ़ेंगी। रामकिशोर जी की तरह यदि हर विषय को व्यंग्य की सामग्री बना लिया जाए तो इस तंग माहौल में भी होठों पर हँसी तैरती रहेगी| इस प्रकार के व्यंग्य संग्रह इस हँसी में इज़ाफ़ा करते रहे, और रामकिशोर जी के व्यंग्य आगे भी साहित्य जगह में दस्तक देते रहें।
पुस्तक – मूर्खता के महर्षि
लेखक – रामकिशोर उपाध्याय
समीक्षक – ममता ‘महक’,
कोटा, राजस्थान