__कैलाश चंद साहू

मैं तो महबूब के वादो से जिया करता हूं
बन संवर के संग होठों से पिया करता हूं।।
मुहब्बत में सनम जीना हुआ मुश्किल
देखकर यार की आंखों में पिया करता हूं।।
तेरी मस्त मस्त अदाओं का हूं कातिल
जिस्म के हर कतरे रोज सिया करता हूं।।
जीना मरना तेरे ही संग यार मेरे अब
भीगी ग़ज़ल ख्वाबों में गाया करता हूं।।
रात दिल आहे भरकर जीना नहीं गवारा
तेरे एहसासों के संग यार जिया करता हूं।।
जब कभी उसकी सूरत को देखता हूं मैं
प्यार भरी निगाहों से छू लिया करता हूं।।
मुझे किसी दवा दारू की नहीं जरूरत
संभाला देख मयकशी पिया करता हूं।।
मेरे महबूब के होठो में है मयकशी नशा
आनंद महबूब की मस्ती जिया करता हूं।।
कैलाश चंद साहू
बूंदी राजस्थान