साहित्य
विश्वगुरु

दिपाली मिरेकर
बट रहा है मेरा भरतखंड
जाति,धर्म, भाषा,वर्ग के भेद में
क्यू है छाया अंधकार का साया
संस्कृति और मानवियता प्रधान राष्ट्र में।
भिन्न भाषा, भिन्न जाति
फिर भी भारत एक है
भारत मां की ममता में
क्या बच्चों में भेद है??
छिद्र होती एकता
क्यू मचा हाहाकार है??
विश्व का विश्व गुरु
क्या भटक रहा पथ है??
वसुंधरा कुटुंबकम की परंपरा
क्यू कलयुग में क्षीण है??
अधर्म का नारा हैं गुंज रहा
धर्म की सांसे है घुट रही
क्या तेरा क्या है मेरा
सारा संसार है मोहमाया।
भाई भाई का भाव है घट रहा
भिन्नता का बीज अंकुर रहा
मां बाप हो रहें अनाथ
बच्चें दौड़ते उन्नति के रेस में।
दिपाली मिरेकर
विजयपुर कर्नाटक