
सुषमा श्रीवास्तवा
न जाने कितने दिनों से बुन रही थी एक ख्वाब।
कोई तो आये मेरे ज़िन्दगी मे लाजवाब।।
अचानक ही आया कोई अनदेखा अनजाना।
लग रहा था जैसे हो मानो जाना पहचाना।।
एक दूजे को पसंद कर भरी हमने हामी।
जैसे दिल के धड़कनों की आवाज हमने जानी।।
आशीर्वाद से सबके हुई हमारी सगाई।
सबने दी हमको ढेर सारी बधाई।।
लेकर सबकी शुभकामनाएँ, चल दिए सफर पर।
कर्म से आगे देखा नहीं, इस प्रेम-डगर पर।।
रचयिता- सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक रचना,सर्वाधिकार सुरक्षित, रुद्रपुर, उत्तराखंड।