साहित्य
शिव ही राम श्याम


कार्तिकेय त्रिपाठी ‘राम’
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शिव तुम ही राम मेरे,
घनश्याम भी हो मेरे,
तुम मीत भी हो मेरे,
मन प्राण भी हो मेरे ।
शिव तुम ही राम …
नहीं भेद कोई होता ,
जो जन्म हमें देता,
हम उसके धाम के हैं,
वो धाम है हमारा ।
शिव तुम ही राम …
सब श्वांस हैं तुम्हारी,
हम अंश भी तुम्हारे,
दाता भी मेरे तुम हो,
आशा भी मेरे तुम हो।
शिव तुम ही राम ….
बिन तेरी कोई इच्छा,
पत्ता भी ना खड़कता,
जो शिव से कोई रूठे,
होता ना काम अच्छा।
शिव तुम ही राम….
राम भी हो मेरे, ,
घनश्याम भी हो मेरे,
जीवन की घूमे धूरी,
हो पूर्ण विराम मेरे।
शिव तुम ही राम ….
कार्तिकेय त्रिपाठी ‘राम’
गांधीनगर, इन्दौर,(म.प्र.)