
शीला शर्मा
रघुवर,
तुम अति कृपालु हो,
मानव तन में अवतार लिया ।
जीवन कैसा हो ?
यही बताने को
सुख, दुख संग, स्वीकार किया।।
गुरु भक्ति क्या होती है ?
आज्ञा पालन कैसे होता ?
आदर्शों के परिपालन में,
हे मनुज,
सुख त्याग का आनन्द क्या होता ?
राजा के घर में जन्म लिया ,
पर त्यागी जीवन ही सदा जिया,
जग को यही सिखाना था,
हे मनुज,
कर्तव्य का पालन क्या होता ।।
एक पत्नी व्रत का वचन दिया
आजीवन ही निर्वाह किया,,
सहधर्मिणी के मान के लिए,
हे मनुज,
संकट से भिड़ना क्या होता ?
जब हाथ में शस्त्र उठा लिया ,,,
अन्याय से तुमने युद्ध किया ,,
विजेता बनकर यह दिखा दिया,
हे मनुज,
रामराज्य धरा पर क्या होता ?
अब फिर से हाहाकार मचा,
मानव भस्मासुर आज बना,,
प्रकृति भी अब विकराल हुई ,,
हे मनुज,
प्रलय का आना क्या होता ?
हे मनुज ,
राम धनुर्धारी , सा,
अब अवतार ना फिर होगा।।।
कोई नहीं जग पालक है,,
श्री समर्थ राम रघुवर जैसा,,
श्री राम तो है करुणा सागर,,
सुन लेंगे ,जग के विपदा के स्वर,
हे दीनबंधु ,
दुखहर्ता तुम,,
राम नाम कृपा ,बन बरसो तुम
हम शरण तुम्हारी आए हैं
तुम बिन आधार कहां होगा।।।
राम राम जय राजा राम,
राम राम जय सीता राम,
राम राम जय जय श्री राम ।।
- शीला शर्मा,, स्वरचित मौलिक रचना
पुणे,,, महाराष्ट्र,,,