” संतोषं परमं सुखम् “

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
हजारों वर्ष पहले की कथा है । सत्यपुर नामक एक नगर था । उस नगर के राजा का नाम सत्यव्रत था । राजा सत्यनिष्ठ , दयालु व बड़े प्रतापी थे । उनके चार पुत्र थे ।
एक दिन दरबार में राजा ने कहा कि वैसे तो कहीं से भी कोई शिकायत नहीं मिली है कि हमारी प्रजा दु:खी है , फिर भी राजधर्म कहता है कि राजा को अपनी प्रजा की दशा का भान होना चाहिए । कहीं कारिंदे प्रजा का शोषण तो नहीं करते । राजा ने अपने बड़े पुत्र से कहा कि जाओ तथा पता करो कि हमारे राज्य में किसी को कोई कष्ट तो नहीं है । बड़े राजकुमार ने राजा को प्रणाम किया तथा घोड़े पर सवार होकर नगर की गलियों में भेष बदलकर घूमने लगा । कुछ दिनों के बाद घूमते-घूमते एक जंगल में पहुंचकर देखता है कि एक तपस्वी जिनके मस्तक से तेज प्रकाशित हो चारों और बिखरा हुआ है तथा तपस्वी ध्यानावस्था में विराजमान है । राजकुमार घोड़े से उतरकर , महात्मा के चरण स्पर्श कर , हाथ जोड़कर खड़ा हो गया । थोड़ी देर में महात्मा जी समाधि से जगे तथा सामने खड़े अपरिचित को देखने लगे । राजकुमार ने अपना परिचय देकर भ्रमण करने का प्रयोजन बताया कि पिता की आज्ञा से प्रजा की दशा-दिशा जानने के लिए राजमहल से बाहर निकलकर आश्रम तक पहुंचा हूँ ।महात्मा जी ने राजकुमार का स्वागत किया तथा उनसे विश्राम करने का आग्रह किया। राजकुमार आश्रम में रुक गया । वह देखता है कि आश्रम में चार सुंदर व आकर्षण घोड़े बंधे हैं , जिन्हें देखकर वह मोहित हो गया । राजकुमार ने महात्मा जी से घोड़ा देने की अभ्यर्थना की । महात्मा जी सुनकर मुस्कुराए और कहा की घोड़ा दे सकता हूं , किंतु मेरी एक शर्त है कि जो कुछ तुम देखोगे , उसे अर्थ सहित आकर तुम्हें बताना होगा , नहीं तो तुम पत्थर के हो जाओगे । राजकुमार ने कहा कि शर्त मंजूर है और वह घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ा । हवा में उड़ते हुए घोड़े पर सवार राजकुमार ने एक आश्चर्य देखा कि एक खेत में सुंदर-सुंदर फल-फूल लगे हैं , किंतु लगी हुई बाड़ ही उन फल- फूलों का भक्षण कर रही है । यह बात उसकी समझ में नहीं आई । उसने आश्रम लौटकर महात्मा जी को सारी बातें बताई । महात्मा जी ने इसका मतलब पूछा तो उसने अपनी मुंडी हिला कर कहा कि नहीं जानता । शर्त के अनुसार राजकुमार पत्थर का हो गया । कई दिन बीतने के बाद जब राजकुमार वापस नहीं लौटा तो राजा सत्यव्रत ने दूसरे राजकुमार को भी भेजा । वह भी घूमते हुए उसी जंगल में महात्मा जी के पास पहुंचा । सुंदर घोड़े को देखकर उस पर चढ़ने की इच्छा जाहिर की । महात्मा जी ने शर्त बताई तथा घोड़ा दे दिया । घोड़े पर सवार राजकुमार काफी दूर निकल गया और देखता है की एक गाय ने बछिया जनी है और गाय ही बछिया का दूध पी रही है । उसकी समझ में कुछ नहीं आया । आश्रम आकर उसने यह बात महात्मा जी से बताई , किंतु उसका अर्थ न बता पाने से वह भी पत्थर का बन गया । इसी प्रकार राजा ने दोनों बेटों व प्रजा की स्थिति जानने के लिए तीसरे बेटे को भी भेजा । राजकुमार भी जंगल पहुंचता है तथा सुंदर घोड़े की मांग करता है । महात्मा जी की शर्त मानते हुए घोड़े पर सवार होकर जंगल में निकल जाता है तो देखता है कि एक आदमी अपने सिर पर लकड़ी का गट्ठर लादे है तथा दोनों हाथों में भी लकड़ी पकड़ी हुई है , फिर भी पैर से लकड़ियां उठाने का प्रयास कर रहा है । कभी उसका गट्ठर सिर से गिर पड़ता है तो कभी एक हाथ की लकड़ी छूट जाती है वह कुछ भी समझ नहीं पाता और आश्रम लौट आता है । महात्मा जी को समस्त वृत्तान्त बताते हुए मतलब बताने में असमर्थता व्यक्त करता है। वह भी पत्थर का बन गया । कुछ दिन बीतने के बाद राजा को चिंता होने लगी और उनकी खोज में चौथे राजकुमार को ही भेज दिया। चौथा राजकुमार भी घूमते-घूमते उसी जंगल में पहुंच जाता है तथा घोड़ों को देख कर पाने की इच्छा जाहिर करता है। महात्मा जी ने शर्त बता कर घोड़े को दे दिया । चौथा राजकुमार हर्षित होकर चारों ओर घूमने लगा और देखता है कि सात कुओं के बीच में एक बड़ा कुआं है , जो सातों कुओं को जल से भर देता है , किंतु उस बीच वाले कुएं को सातों कुएं मिलकर भी नहीं भर पाते । आश्चर्यचकित होता हुआ आश्रम लौट आया । महात्मा जी के पूछने पर इसका मतलब न बता पाने के कारण वह भी पत्थर का हो गया । राजा को अब और चिंता हुई और वह घोड़े पर सवार होकर अपने राजकुमारों की खोज में निकल पड़ा । घूमते-घूमते वह भी उसी जंगल में महात्मा के पास पहुंचकर अपने पुत्रों के संबंध में पूछने लगा तो महात्मा ने पत्थर की मूर्तियों की ओर इशारा करके कहा कि ये राजकुमार पत्थर की शक्ल में है । साथ ही सारा वृत्तांत कह सुनाया और कहा कि राजन् आप भी घोड़ों को लेकर इसके रहस्य की खोजबीन कर लें । आपके बच्चे जीवित हो जाएंगे । राजा बोले महात्मन् आप रहस्य को बताएं , मैं कोशिश करता हूँ । महात्मा जी ने उन राजकुमारों द्वारा बताई चारों रहस्यों के विषय में राजा को बताया और कहा कि यदि आप भी इनका मतलब नहीं बता पाए तो आप भी पत्थर के हो जाएंगे । इसलिए राजन् सोच-विचार कर लें । राजा सत्यव्रत धर्मपरायण व तत्वज्ञानी थे। उन्होंने महात्मा जी को प्रणाम करते हुए कहा कि महात्मन् कलयुग का आरम्भ होने वाला है। यह घटनाएं कलयुग में घर-घर की कहानियाँ हैं । राजा ने कहा कि महात्मन् ‘बाड़ का स्वयं फल-फूल खाना बताता है कि कलयुग में जो हमारे रक्षक होंगे , वही भक्षक बन कर शोषण करेंगे’ । ‘गाय द्वारा बछिया का दूध पीना’ दर्शाता है कि लोग अपनी पुत्री का धन खाने में संकोच नहीं करेंगे । ‘पुरुष द्वारा गट्ठर सिर पर लादे हुए , दोनों हाथों में लकड़ी पकड़े हुए होने के बावजूद भी पैर से लकड़ी उठाना’ यह दर्शाता है कि मनुष्य धन-लोलुपता में इतना निमग्न रहेगा कि उसे संतोष नहीं होगा तथा सारा जीवन धन इकट्ठा करने में परेशान रहकर कष्ट भोगेगा । अंत में ‘सात कुएं , जिसके जल से भरते हैं , आवश्यकता पड़ने पर वे सातों कुएं उस एक कुएं को नहीं भर पाते’ का मतलब है कि कलयुग में एक पिता सारे परिवार का भरण-पोषण करेगा , किंतु सारा परिवार मुखिया का भरण-पोषण नहीं कर पाएगा । सब स्वार्थ में अंधे दिखेंगे , अपने से मतलब रखेंगे । महात्मा जी ने राजा की बातें सुनकर प्रसन्नता व्यक्त की तथा राजा के चारों राजकुमारों को जीवित कर उनको आशीर्वाद दिया और कहा ये राजकुमार जिस प्रकार से घोड़ों को देखकर लालच में आ गए थे , पत्थर के हो गए , जबकि इनके पास भी अच्छे घोड़े थे , किंतु राजा आपने घोड़े से संतुष्ट था , वह जैसा था ,वैसा ही रहा ।
इस कथा से यह सार निकलता है कि जब तक हम अपने में संतुष्ट रहेंगे , हमें किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं आएगी । जैसे ही लौकिक जगत से तादात्म्य स्थापित कर भौतिकता के प्रति आकर्षित होंगे , कष्ट उठाएंगे । सच ही कहा गया है “संतोषं परमं सुखम्” संतोष ही सबसे बड़ा सुख है ।
ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी
8707689016