संयम माधुरी (दोहे )
__कल्पना भदौरिया “स्वप्निल “
संयम साधक धारिये , सुंदर संस्कृत सार |
अक्षय निर्मल लेख से, सार्थक जीवन पार ||
सज्जन सौरभ आज जो, सागर मंथन जान |
जीवन – दर्पण प्रेम का, संयम सिंचित मान ||
अंतर संयम धारिये, जीवन सार्थक मूल |
सज्जन वैभव सादगी, वंचित नाहक शूल ||
संयम बंधन बांधकर, धीरज मानव धार |
जीवन सार्थक हो चले, अंतस निर्मल सार ||
शीतल शोभित भाव जो, सादर संयम ज्ञान |
मानस मंदिर धैर्य है, पोषित उज्ज्वल जान ||
मानस दर्पण देख के, अंतस सूरत देख |
मुक्तक वाचिक बोल से, संयम साधक लेख ||
आदर सादर कीजिए, पालित पोषित कर्म |
संयम सागर डूबिये, मंगल घोतक धर्म ||
उत्तम संगति जो रहे, पाते पावन ज्ञान |
संयम अर्पण भाव से, सार्थक जीवन मान ||
संयम उत्तम धर्म है, सुन्दर शीतल छाँव |
नैतिक धार्मिक कर्म से, मंजिल चूमे पाँव ||
स्नेहिल सुंदर भाव से, रंजित अंकित भूप |
जीवन सेवक जान ले, संयम शोभित रूप ||
कंचन कोमल कामिनी, बाँचत पुस्तक आज |
संयम साधक जो बने, सुंदर जीवन साज ||
अक्षय लेखन लेख से, शोभित पावन द्वार |
सेवक सिंचित भाव से, मानव होत उद्धार ||
संगति सुन्दर साथ से, अक्षय पूरित काज |
मंगल भावित भाव से,जीवन संबल साज ||
कल्पना भदौरिया “स्वप्निल “
लखनऊ
उत्तरप्रदेश