
राजीव कुमार झा
आकाश
कितनी दूर
बाकी बचा!
यादों में
बीते वक्त को
किसने रचा
बारिश के बाद
मौसम
बदल गया
हरे भरे खेत
सिमटने लगे
नदी – नाले
दुर्गंध से भर
गये!
काफी दूर तक
बाग बगीचे
उजड़ गये!
आदमी
पगडंडियों को
छोड़ कर
खेत के बगल से
फोरलेन पर
कार को
फर्राटे से उड़ाता
शहर के पास
आ रहा!
फेसबुक पर
सबको अपना
वीडियो
दिखा रहा
अब गांव
बस्ती में
बदल गया
तालाब के
किनारे
गुम होती
धूप में
जाड़े का दिन
चुप हो गया
अरी सुंदरी!
यहां सबकुछ
बदल गया
यादों में भी
कुछ बाकी
न रहा !
नदी का घाट
सुनसान
हो गया
मंदिर का आहाता
भीड़भाड़ से
सुबह भर गया
आदमी के
सामने आदमी
गुमसुम
हो उठा!