साहित्य
सरस्वती राजेश की आत्मवाणी

जसगीत- काबर तैं धरे रूप काली
ममतामयी माता, भगवती भवानी
काबर तैं धरे रूप काली.. ऐहे
काबर तैं धरे रूप काली
लाली -लाली आँखी कइसन तैं छटकारे
लाली -लाली जिभिया कइसन तैं लमाये
देख के लैइका सियान माता सबके जी घबराये
ममतामयी माता, भगवती भवानी
काबर तैं धरे रूप काली.. ऐहे…
कारी देह बना के माता रूप धरे बिकराल
केश घलो झरिहाये माता मुंड के पहिरे माल
कतका जी घबरावत हे तोर देख के अइसन हाल
ममतामयी माता, भगवती भवानी…
आगी कस तोर गुस्सा माता भारी तम-तमवाये
लहू पीये तैं रक्तबीज के रण म नाच कराये
तीसर आँखी खोल के माता भस्म जमो कर जाये
ममतामयी माता, भगवती भवानी
काबर तैं धरे रूप काली ..ऐहे…
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सरस्वती राजेश साहू
चिचिरदा, बिलासपुर (छ. ग.)