साहित्य
सूखे जल के स्रोत

मणि बेन द्विवेदी
सूख गए सब ताल तलैया
मचा है हाहाकार।
नन्ही प्यारी गौरैया भी
प्यास से हुई बेजार।
ढूंढ रही सब इधर उधर है
जल ना दिखे कहीं पर,
दिखा दूर से नल इक इनको
आई सभी हैं उड़ कर।
बूॅंद बूॅंद से प्यास बुझाती
चिड़िया पारा पारी
गर्मी का प्रकोप है इतना
तपती धरती प्यारी,
जीव जन्तु सब प्यास से तड़पे
इॅंसा की दिखे लाचारी
सूरज दादा बने बेरहम
ताप का कहर हैं ढाए,
पशु पक्षी गर्मी से आहत
मानव समझ ना पाए।।
भूल कहें हम आज ये किसकी
आकुल धरा बिलखती,
हरियाली का आंचल उजड़ा
व्यथा सभी से कहती।
फर्ज़ सभी का यही बने
अपना कर्तव्य निभाएं
ताल तलैया करें सुरक्षित
जल ना व्यर्थ बहाएं।।
बड़े बड़े तालाब हो निर्मित आओ मिल के करें सभी
जल का हो सॅंरक्षण समुचित उसमे जल को भरें सभी।
मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश