(यह कविता फौजी के जीवन पर आधारित हैं। इस कविता में फौजी की पत्नी ,और उसके परिवार की परिस्थिति का वर्णन हैं)
“जीत हो तुम्हारी सीमा पर लड़ाई की,
साथ है, दुआए शामिल
अब तो सदा मेरी भी,
छूटी भी नही थी ,अभी मेहंदी हथेली की,
माना आज ही अभी ,विवाह हुआ मेरा हैं।
मगर देश तुझको पुकारे, कर्तव्य तेरा है।
जाओ तुम ,सैनिक जाओ
हैं साथ दुआ मेरी भी,
छूटी भी नही थी,अभी मेहंदी हथेली की,
मेहंदी का रंग देखो,आज भी ये लाल हैं।
कह रहे ,शहीद हुआ देश का एक लाल हैं।
मेहंदी का रंग लाल,फौजी का रक्त लाल,
याद करेगी दुनिया, सैनिको का ये बलिदान
धन्य ये सैनिक की पत्नी,धन्य ये परिवार हैं।
तिरंगे में लिपटा देखा, शहीदों को आज है।
सरहद पर भेज देना,बिल्कुल ना आसान था,
माँ ने अपना लाल खोया,पिता का अभिमान था,
बहनों ने खो दिया,राखी की कलाई को,
सुहागन ने सह लिया,साजन से जुदाई को,
वीरवधू कहलाऊंगी,इसका भी गुमान हैं।
देश मे अमर रहेगा,तुम्हारा बलिदान ये।
सोचती हूँ, सैनिक होना ,बिल्कुल ना आसान है।
हर दिन देश पर ही होता कुर्बान हैं।
कहते थे,तुम इक बात, वही याद आती हैं।
मौत तो नियति सबको ही आनी हैं।
आम आदमी की मृत्यु मौत ही कहलाती हैं।
मगर सैनिको की मृत्यु शहादत कहलाती हैं।
सहीदो का नाम मिलना गर्व की ही बात है।
वीरता पर तुम्हे समर्पित देश का सलाम हैं।
जीत हो तुम्हारी सीमा पर लड़ाई की,
साथ है, दुआए शामिल
अब तो सदा मेरी भी,
छूटी भी नही थी ,अभी मेहंदी हथेली की,
-ममता
