__कैलाश चंद साहू”कनक”

हमारे फिल में नहीं कोई रुसवाई
फिर दुनिया देती क्यों यार सफाई।।
वो बाते हमने तुमसे क्यों छिपाई
क्योंकि तुम हो सदा से ही पराई।।
उससे क्या था रिश्ता नहीं पता
मासूमियत उसने हमसे छुपाई।।
प्रीत का दामन थामा उसने फिर
किसे सुनाए दर्द भरी रुसवाई।।
अंगना में सोलह श्रृंगार कर रही
गौरी फिर क्यों घूंघट में शरमाई।।
अंखियों में था इश्क का नशा
फिर क्यूं यार कर गई पीर पराई।।
सच की बुनियाद हिल गई दिल में
मुहब्बत में क्यों सनम जग हंसाई।।
दुनिया में बढ़ है रहनुमाई फिर भी
चाहत कभी नहीं उसकी मुस्कुराई।।
आग लगी दिल में फिर भी क्यूं
प्यार में बढ़ रही आज रुसवाई।।
दिखावे का है आजकल जमाना
देखो शर्म से झुक गए लोग लुगाई।।
कैलाश चंद साहू”कनक”