__डॉ रमेश कटारिया

हर तरफ़ पानी ही पानी चाहता हूँ
नदियों में फ़िर से जवानी चाहता हूँ
बाँध टूटे या कहीँ भूकंप आए
सुर्खिओं में इक कहानी चाहता हूँ
लब्ज वो जो तीर की मानिंद चुभे
लब्जो में ऐसी रवानी चाहता हूँ
उम्र भर उतरे नहीँ जिसका नशा
चीज़ इक ऐसी पिलानी चाहता हूँ
दिल हमारा भर गया अब दोस्तों से
अब दुश्मनों की मेहरबानी चाहता हूँ
देखते ही जान जाएँ सब लोग पारस
उसकी इक ऐसी निशानी चाहता हूँ
डॉ रमेश कटारिया
पारस