
सुषमा श्रीवास्तव
एक थे अफलातून, चले सफर को,
फँसे रात में वेटिंग रूम-देहरादून, नींद न आई रात भर, चूसें मच्छर खून।
मच्छर चूसें खून, सारी देह घायल कर डाली
उन्हें उड़ा ले ज़ाने की योजना बना डाली।
बच गए कैसे, यह बतलाएँ तुमको,
नीचे खटमल जी ने पकड़ रखा था उनको।
विकट हुआ घमासान, थके नहीं रणवीर ।
ऊपर मच्छर नोंचते, नीचे खटमल वीर।
नीचे खटमल वीर, जान की आफत थी आई,
फुसफुसाते जपें-“जै जै जै हनुमान गुसाईं।
इतने में ही खैर न थी, सोता इक सरदार चिल्लाया,
तूसी भजन करो तो, देखो बाहर जाओ भाया।
मेरी नींद खराब करै क्यूँ, कल रात से न हूँ सोया।
अफलातून का सफर रस्ते बिच रोया,
घर से भला कहीं न, ये समझ देर मेें होया।।
रचनाकार-
सुषमा श्रीवास्तव
मौलिक कृति
सर्वाधिकार सुरक्षित
उत्तराखंड।