साहित्य
समझ न पाया मन

राकेश जाखेटिया
बहुत आते हैं समझाने
समझ न पाता मन
पूछा उनसे मैंने
कहां है मंजिल मेरी
एक अदृश्य शक्ति
फिर आकर मुझ से बोली
एकाग्रचित हो कर सोच
फिर दें ध्यान कर्मों पर
फिर जो सामने आए
ले आनंद फिर उसका
फिर क्या था ?
जीवन बदलते देखा !
✍️
राकेश जाखेटिया
संचार सेवा सदन,
विकास मार्ग, दिल्ली-92