श्रद्धांजलि (भाग-3)

तुलसीदास
वीणागुप्त
श्रीरामचरित मानसरोवर में ,
क्रीड़ा करते सुभग हंस।
चातक रामघनश्याम के,
नित पुलक,नव रुचिर रंग।
आगम, पुराण,उपनिषद के
तुम प्रकांड पंडित महान।
संस्कृत पर वर्चस्व तुम्हारा,
जनभाषा में किया प्रभु गुणगान।
भक्तिकाल की संक्रमण- वेला,
विविध भाँति के हुए विवाद।
तुम लेकर आए समन्वय भावना,
दिया ऐक्य का सुख संवाद।
स्वान्तःसुखाय रचना तुम्हारी,
बरसत सदा वर वारि विचार।
सत्य ,शिव ,सौंदर्य समन्वित ,
बही बन कर गंगा की धार।।
काव्य-कला निष्णात तुम,
भाव-शिल्प का मणिकांचन योग।
उपमा,रूपक,उत्प्रेक्षा यमक ,
सभी का किया सहज प्रयोग।
हिंदी साहित्य-आकाश के , स्वर्णिम नक्षत्र तुम आभामान
शक्ति ,शील ,नीति त्रिवेणी ,
शीतल करती मन और प्राण।
कला अधूरी बिना तुम्हारे,
उजले -काले पात्र उकेरे,
अशिव और असत्य पर तुलसी ,
तेरी कविता जय का गान।।
वीणागुप्त
नई दिल्ली